चंडीगढ़ और खरड़ में आज सुबह उस समय राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई जब गिल्को ग्रुप ऑफ कंपनीज़ के एम.डी. और कल ही भाजपा में शामिल हुए पूर्व अकाली नेता रंजीत सिंह गिल के आवास और कार्यालय पर विजिलेंस ब्यूरो ने छापामारी की। सूत्रों के अनुसार विजिलेंस की टीम सुबह-सवेरे सेक्टर-2 चंडीगढ़ स्थित गिल के घर और खरड़ स्थित गिल्को वैली कार्यालय पर पहुंची। छापेमारी के दौरान पुलिस बल की भारी तैनाती देखी गई, जिसने पूरे इलाके में हलचल मचा दी।
रंजीत सिंह गिल ने शुक्रवार रात हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की मौजूदगी में भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा था। उनकी यह राजनीतिक पारी तब शुरू हुई जब यह खबर सामने आई कि आम आदमी पार्टी की ओर से उन पर पार्टी जॉइन करने का दबाव बनाया जा रहा था। इसी दबाव के चलते गिल ने देर रात भाजपा में शामिल होने का फैसला लिया और अगले ही दिन उनके घर पर छापा पड़ा, जिसे भाजपा के नेताओं ने प्रतिशोध की राजनीति करार दिया है।
बताया जा रहा है कि रंजीत सिंह गिल कभी शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के करीबी रहे हैं। लेकिन क्षेत्र में हुए संगठनात्मक फेरबदल से वे नाखुश थे और 12 जुलाई को अकाली दल से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में खरड़ सीट से अकाली दल के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन पिछली बार आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार अनमोल गगन मान से हार का सामना करना पड़ा।
गिल का राजनीतिक सफर कारोबारी पृष्ठभूमि से शुरू हुआ था और अब वे भाजपा के संभावित उम्मीदवार माने जा रहे हैं। सूत्रों का मानना है कि आने वाले चुनावों में पार्टी उन्हें खरड़ से मैदान में उतार सकती है। लेकिन ठीक उनके शामिल होने के अगले ही दिन विजिलेंस छापे ने इस घटनाक्रम को नया मोड़ दे दिया है और इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है।
क्यों है यह खबर अहम
यह घटनाक्रम पंजाब की बदलती राजनीति में सत्ता, कारोबारी हितों और प्रशासनिक तंत्र की भूमिकाओं पर गंभीर सवाल उठाता है। जब कोई नेता एक पार्टी से नाता तोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होता है और उसके कुछ घंटों के भीतर ही उसके ठिकानों पर छापेमारी हो जाती है, तो यह केवल जांच का विषय नहीं रह जाता, बल्कि जनमानस में यह संदेह भी पैदा करता है कि क्या प्रशासनिक एजेंसियां राजनीतिक दबाव में काम कर रही हैं?
इस प्रकरण में यह भी महत्वपूर्ण है कि आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच प्रतिस्पर्धा अब सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि प्रशासनिक घटनाक्रमों में भी दिखाई देने लगी है। इससे यह स्पष्ट होता है कि पंजाब की राजनीति आने वाले समय में और अधिक तीखी और जटिल हो सकती है।
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