कुमार सोनी: नासिक (महाराष्ट्र) की पावन गोदावरी नदी के तट पर स्थित पंचवटी गंगा घाट पर इतिहास की धरोहर और सिख अस्मिता की प्रतीक महारानी जिंद कौर की पुनर्निर्मित समाधि का उद्घाटन एक गरिमामयी श्रद्धांजलि समारोह के साथ संपन्न हुआ। यह ऐतिहासिक क्षण 14 वर्षों के निरंतर प्रयास और महाराष्ट्र सिख समाज तथा स्थानीय प्रशासन के सहयोग से संभव हो पाया, जिसमें अनेक सिख संगठनों की भागीदारी भी रही। कार्यक्रम में सिख समाज के गणमान्य व्यक्तियों, नेताओं और संगठनों ने एकत्र होकर महारानी जिंद कौर को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की।
महारानी जिंद कौर, शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की धर्मपत्नी और अंतिम सिख सम्राट महाराजा दिलीप सिंह की माता थीं। वह मात्र एक रानी नहीं बल्कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध डटकर खड़ी रहने वाली महिला शक्ति का प्रतीक थीं। महाराष्ट्र सिख समाज तालमेल समिति के चेयरमैन जसपाल सिंह सिद्धू ने उन्हें राष्ट्रीय चेतना और सिख विरासत की प्रेरक मां बताया, जिन्होंने अंग्रेजों की आंखों में आंखें डालकर बात करने का साहस दिखाया।
इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि 1 अगस्त 1863 को महारानी का लंदन में निधन हुआ था। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका पार्थिव शरीर भारत में दफनाया जाए, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने पंजाब में उनके दाह-संस्कार की अनुमति नहीं दी। इसके चलते उनका अंतिम संस्कार नासिक में ही गोदावरी किनारे किया गया। बाद में उनकी अस्थियां उनकी पोती राजकुमारी बंबा द्वारा लाहौर लाकर महाराजा रणजीत सिंह की समाधि के पास स्थापित की गईं।
इस स्मारक के उद्घाटन समारोह में विधायक राहुल ढिकले, जत्थेदार बाबा रणजीत सिंह, पूर्व विधायक बाला साहेब सनप, गुरुद्वारा कमेटी के कई पदाधिकारी, सिख समाज के अग्रणी नेता, समाजसेवी और विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। इस आयोजन ने सिख इतिहास, राष्ट्रीय स्वाभिमान और नारी सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में महारानी जिंद कौर की विरासत को पुनः जीवंत कर दिया।
यह क्यों है महत्वपूर्ण
महारानी जिंद कौर की स्मृति में निर्मित यह समाधि न केवल इतिहास को सम्मान देने का कार्य है बल्कि आधुनिक भारत को यह याद दिलाने वाली एक चेतावनी भी है कि कैसे विदेशी सत्ता ने भारतीय अस्मिता को कुचलने की कोशिश की थी। इस स्मारक से आने वाली पीढ़ियों को यह सीख मिलेगी कि स्वतंत्रता, सम्मान और संघर्ष के बिना कोई भी सभ्यता अपनी आत्मा को नहीं बचा सकती। साथ ही, यह सिख समुदाय की ओर से अपनी विरासत को संभालने और संरक्षित करने की प्रेरणादायक मिसाल भी है। यह स्मारक केवल एक ऐतिहासिक ढांचा नहीं, बल्कि भारतीयता और संघर्ष की प्रतीक महारानी जिंद कौर की अमिट स्मृति का जीवंत स्तंभ है।
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