- February 19, 2025
बाबा बालक नाथ मंदिर के ‘रोट’ प्रसाद को लेकर नई गाइडलाइन, खाने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के दियोटसिद्ध स्थित बाबा बालक नाथ मंदिर में वितरित किए जाने वाले ‘रोट’ प्रसाद की गुणवत्ता को लेकर एक महत्वपूर्ण खुलासा हुआ है। इस खुलासे के बाद से श्रद्धालुओं में इस प्रसाद की शुद्धता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
दरअसल, सोलन जिले के कंडाघाट स्थित समग्र परीक्षण प्रयोगशाला की हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार, तीन महीने पहले मंदिर ट्रस्ट की दुकान से बेचा गया रोट प्रसाद खाने योग्य नहीं पाया गया। इस रिपोर्ट के आधार पर अब प्रसाद की गुणवत्ता और उसकी शेल्फ लाइफ को लेकर सख्त दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
पहली जांच में सैंपल फेल होने के बाद, दियोटसिद्ध व्यापार बोर्ड ने रोट प्रसाद के नए नमूनों की विस्तृत जांच कराई। इस जांच के नतीजे बताते हैं कि रोट केवल 20 दिनों तक ही खाने योग्य रहता है। इसके बाद, नमी और रसायनों में बदलाव के कारण इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है और यह सुरक्षित रूप से खाने योग्य नहीं रहता।
मंदिर में चढ़ाए जाने वाले ‘रोट’ प्रसाद का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। यह प्रसाद गेहूं, चीनी और देसी या वनस्पति घी से तैयार किया जाता है, जिसे श्रद्धालु बाबा बालक नाथ जी को अर्पित करते हैं और फिर इसे प्रसाद के रूप में अपने घर ले जाते हैं। परंपरा के अनुसार, भक्तगण इसे लंबे समय तक संभालकर रखते थे और विशेष अवसरों पर ग्रहण करते थे। हालांकि, अब नई जांच रिपोर्ट के बाद इसकी समय-सीमा केवल 20 दिनों तक सीमित कर दी गई है।
हर साल लाखों श्रद्धालु करते हैं बाबा बालक नाथ मंदिर के दर्शन
हिमाचल प्रदेश के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक, बाबा बालक नाथ मंदिर में हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। विशेष रूप से, 14 मार्च से शुरू होने वाले वार्षिक मेले के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
श्रद्धालुओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अब प्रशासन ने रोट प्रसाद की शुद्धता और गुणवत्ता पर सख्त नियम लागू करने का निर्णय लिया है। अब मंदिर के आसपास प्रसाद बेचने वाले दुकानदारों को हर पैकेट पर निर्माण तिथि स्पष्ट रूप से लिखनी होगी। यह निर्णय भक्तों को समयसीमा के भीतर ताजा प्रसाद ग्रहण करने में सहायता करेगा।
‘रोट’ प्रसाद बेचने वालों के लिए नए सख्त नियम
इस रिपोर्ट के बाद, स्थानीय व्यापारियों और दुकानदारों ने नए नियमों का पालन करने पर सहमति व्यक्त की है। अब से मंदिर के बाहर बेचा जाने वाला रोट प्रसाद केवल 20 दिनों तक ही खाने योग्य रहेगा और इसके बाद इसे बेचना प्रतिबंधित होगा।
इस निर्णय को भक्तों के स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के प्रति एक अहम कदम माना जा रहा है। हालांकि, यह बदलाव उन श्रद्धालुओं के लिए कुछ असुविधाजनक हो सकता है जो लंबे समय तक प्रसाद को अपने पास रखना चाहते हैं, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए यह निर्णय आवश्यक माना जा रहा है।
जैसे-जैसे मंदिर मेले की तैयारियां जोरों पर हैं, प्रशासन यह सुनिश्चित करेगा कि नए दिशानिर्देशों का पालन हो। मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को सलाह दी जाती है कि वे प्रसाद खरीदते समय पैकेट पर लिखी निर्माण तिथि को अवश्य जांच लें ताकि वे इसे निर्धारित समय के भीतर ग्रहण कर सकें।
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