हिमाचल प्रदेश न केवल मानसून की प्रकृति की कटुता झेल रहा है, बल्कि भाजपा सांसदों की मौनता को लेकर प्रदेशवासियों में गहरी नाराजगी भी है। राज्य में वर्तमान में भाजपा के चार सांसद हैं, लेकिन लोकसभा और राज्यसभा में वे हिमाचल की आपदा और जनहानि पर चुप्पी बनाए हुए हैं। परंतु जब वे हिमाचल में आते हैं, तो कांग्रेस सरकार पर कटाक्ष करते हुए दावा करते हैं कि केंद्र और प्रधानमंत्री मोदी ने हर क्षेत्र में निवेश किया है। लेकिन सवाल उठता है — यदि ऐसा है, तो तब कहां है वह रकम, और सांसद भाजपा कार्यकर्ताओं के बजाय हिमाचल की सरकार से आपदा पीड़ितों के लिए आंदोलन क्यों नहीं कर रहे?
शिमला, हिमाचल प्रदेश इस मॉनसून सीज़न में प्रकृति के भयंकर प्रकोप का सामना कर रहा है। चारों ओर तबाही का मंजर है, हजारों घर तबाह हो गए हैं, सड़कें बह गई हैं और जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है। इस गंभीर संकट के बीच, राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच तीखी जुबानी जंग जारी है, जिसने आपदा प्रबंधन के प्रयासों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जनता बेबस और लाचार है, केंद्र सरकार से मदद की आस लगाए बैठी है, लेकिन अब तक कोई ठोस सहायता नहीं मिल पाई है।
प्रकृति का तांडव: मंडी में सबसे भीषण तबाही
साल 2025 के मॉनसून सीजन ने हिमाचल प्रदेश को ऐसी भयंकर तबाही दी है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। विशेष रूप से मंडी जिले में, यह आपदा पिछले वर्षों की सभी त्रासदियों को पीछे छोड़ गई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पूरे प्रदेश में अब तक 1600 से अधिक घर प्रभावित हुए हैं, जिनमें से लगभग 450 घर पूरी तरह से ढह गए हैं। अकेले मंडी जिले में 1077 घरों को नुकसान पहुंचा है और 386 घर पूरी तरह से तबाह हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त, 296 अन्य घर और 1445 पशुशालाएं भी प्रभावित हुई हैं। इस मॉनसून में 1533 पशुओं और 21520 पोल्ट्री पक्षियों की मौत भी हुई है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका है।
सड़कों का हाल तो और भी बुरा है। प्रदेश भर में 383 सड़कें अवरुद्ध हैं, जिनमें दो महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्ग भी शामिल हैं। चंडीगढ़-कीरतपुर-मनाली नेशनल हाईवे का हाल बेहद खराब है, और मंडी से मनाली तक इस पर यात्रा करना खतरे से खाली नहीं है। लगातार भूस्खलन के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को अब तक 200 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। कुल मिलाकर, राज्य को मॉनसून जनित आपदाओं से अब तक 1692 करोड़ रुपये से अधिक का अनुमानित नुकसान हो चुका है। इसमें सर्वाधिक क्षति लोक निर्माण विभाग को 865 करोड़ रुपये और जल शक्ति विभाग को 580 करोड़ रुपये की हुई है। बिजली के 747 वितरण ट्रांसफार्मर (डीटीआर) बाधित हैं, और 249 जलापूर्ति योजनाएं भी ठप पड़ी हैं, जिससे लोगों को पीने के पानी और बिजली के लिए जूझना पड़ रहा है।
सियासी बयानबाजी: संसद में चुप्पी, राज्य में वार-पलटवार
यह त्रासदी ऐसे समय में आई है जब राज्य में राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है। हिमाचल प्रदेश से भाजपा के चार लोकसभा सांसद हैं, लेकिन संसद के भीतर वे राज्य की गंभीर स्थिति पर चुप्पी साधे बैठे हैं। लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही में हिमाचल के मुद्दों पर उनकी ओर से कोई ठोस आवाज नहीं उठाई जा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें प्रदेश की समस्याओं पर बोलने की हिम्मत नहीं है।
हालांकि, जैसे ही ये सांसद अपने गृह राज्य लौटते हैं, उनका रुख पूरी तरह बदल जाता है। वे कांग्रेस नेताओं पर तीखे हमले शुरू कर देते हैं, यह दावा करते हुए कि मोदी सरकार हिमाचल को हर संभव सहायता दे रही है। यदि यह सच है, तो सवाल उठता है कि वह सहायता राशि कहां है? यदि केंद्र सरकार इतनी उदार है, तो भाजपा नेता कांग्रेस सरकार के खिलाफ आंदोलन क्यों नहीं करते कि वह इस पैसे को भूस्खलन पीड़ितों और बेघर हुए लोगों पर खर्च करे? भाजपा का यह दोहरा रवैया जनता के बीच भ्रम और आक्रोश पैदा कर रहा है। जब भी कोई आपदा आती है, भाजपा नेताओं को पिछली कांग्रेस सरकारों पर दोष मढ़ते हुए देखा जाता है, और वे अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेते हैं।
केंद्र की निष्क्रियता और ‘वोट’ का जुमला
राज्य सरकार, जिसके पास सीमित संसाधन हैं, पूरी तरह से केंद्र की भाजपा सरकार पर निर्भर है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर स्थिति की गंभीरता से अवगत कराया है और विशेष राहत पैकेज की मांग की है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव से भी विशेष राहत उपायों की मांग की गई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हिमाचल सहित अन्य राज्यों को तात्कालिक सहायता, जैसे राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की टीमें, सेना के दल और वायु सेना का सहयोग भी प्रदान किया है, लेकिन बड़े पैमाने पर पुनर्वास और स्थायी समाधान के लिए अभी तक कोई ठोस वित्तीय पैकेज की घोषणा नहीं हुई है।
इस बीच, प्रधानमंत्री मोदी के पुराने बयानों को लेकर भी जनता में नाराजगी है। चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री ने अक्सर खुद को “हिमाचल का बेटा” बताया है और हिमाचल प्रदेश के प्रति अपने अगाध प्रेम का दावा किया है। लेकिन इस आपदा के समय, उनके मुंह से कोई सांत्वना या ठोस आश्वासन नहीं आया है। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि ऐसी खबरें भी सामने आई हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक चुनावी रैली में यह कहकर लोगों की भावनाओं को आहत किया कि हिमाचल प्रदेश के लोगों ने भाजपा को वोट नहीं दिया, इसलिए वे अब कष्ट भोग रहे हैं। यदि यह बयान सत्य है, तो यह दर्शाता है कि केंद्र सरकार आपदा राहत को राजनीतिक लाभ-हानि के तराजू पर तौल रही है, जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। यह जुमलाबाजी केवल वोट बटोरने के लिए है, और अब जनता इसे समझने लगी है।
NHAI की लापरवाही और बुनियादी ढांचे का संकट
इस आपदा में राष्ट्रीय राजमार्गों को हुए भारी नुकसान के लिए NHAI की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि सड़क निर्माण और कटिंग के काम में उचित विशेषज्ञता और दूरदर्शिता का अभाव रहा है, जिसके कारण भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं। पहाड़ों को अवैज्ञानिक तरीके से काटा गया, जिससे मिट्टी और चट्टानों का संतुलन बिगड़ गया, और भारी बारिश के कारण वे आसानी से ढह गईं। यह लापरवाही पूरे राज्य में कई समस्याओं का कारण बनी है और भविष्य में भी ऐसी आपदाओं का खतरा बढ़ा दिया है।
जनता का दर्द और आगामी चुनाव
हिमाचल प्रदेश की जनता इस समय गहरे संकट में है। हजारों लोग बेघर हो गए हैं, उनके पास भोजन और आश्रय नहीं है। राज्य सरकार के पास सीमित वित्तीय साधन हैं और वह पूरी तरह से केंद्र सरकार की सहायता पर निर्भर है। लेकिन राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और केंद्र से अपेक्षित सहायता की कमी ने लोगों की पीड़ा को और बढ़ा दिया है।
समय आ गया है कि भाजपा को सिर्फ बयानबाजी से आगे बढ़कर प्रदर्शन करना होगा। अगले डेढ़ साल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और जनता ने सब कुछ देखा है। वे अब सिर्फ जुमलों से नहीं बहकेंगे। हिमाचल के लोग भले ही सीधे-सादे हों, लेकिन मूर्ख नहीं हैं। वे जानते हैं कि कौन उनके साथ खड़ा है और कौन केवल राजनीतिक रोटियां सेंक रहा है। आने वाले चुनाव में जनता उन्हें सही रास्ता दिखाएगी और उन्हें उनके प्रदर्शन का हिसाब देना होगा।
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