सुखबीर सिंह बादल को तख़्त पटना साहिब ने ‘तनखैया’ घोषित किया, पंजाब में छिड़ी सियासी जंग

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पंजाब की राजनीति और सिख धार्मिक संस्थानों के बीच एक नई जटिलता ने जन्म ले लिया है। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के अध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल को सिख धर्म की सर्वोच्च पांच पंथक पीठों में से एक, तख़्त श्री पटना साहिब, द्वारा ‘तनखैया’ घोषित किया गया है। यह निर्णय 4 जुलाई 2025 को लिया गया, जो अब पंजाब की राजनीति और धार्मिक गलियारों में व्यापक बहस और मतभेद का कारण बन चुका है।

‘तनखैया’ क्या है?

सिख परंपरा में ‘तनखैया’ उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसने धार्मिक मर्यादा का उल्लंघन किया हो और जिसे सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगनी पड़े। उसे आमतौर पर तख़्त के सामने पेश होकर अपने कृत्य को स्वीकार करना होता है, पश्चाताप करना होता है, और सेवा (सेवा भाव) के रूप में कुछ दायित्व निभाने पड़ते हैं।

आरोप क्या हैं?

तख़्त पटना साहिब द्वारा घोषित इस निर्णय के पीछे पूर्ण विवरण आधिकारिक रूप से सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) और पंथक हलकों में चर्चा है कि बादल पर सिख मर्यादा में राजनीतिक हस्तक्षेप और गुरुद्वारों के प्रशासन में मनमाने ढंग से हस्तक्षेप करने के आरोप हैं। यह फैसला ऐसे समय आया है जब अकाली दल की पुरानी भूमिका और उसके कथित पंथ विरोधी निर्णयों की लगातार आलोचना हो रही है।

सुखबीर बादल की प्रतिक्रिया

सुखबीर बादल ने इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए इसे “राजनीतिक साजिश” करार दिया है। उन्होंने कहा, “मैंने हमेशा सिख सिद्धांतों के अनुसार जीवन जिया है। यह फैसला मेरे विरोधियों द्वारा मुझे और अकाली दल को बदनाम करने की कोशिश है। मैं पूरी श्रद्धा के साथ तख़्त के सामने पेश होकर अपनी बात रखूंगा।”

अकाली दल की प्रतिक्रिया और राजनीतिक संदर्भ

अकाली दल के प्रवक्ताओं ने इस फैसले को आगामी 2026 विधानसभा चुनावों से जोड़ते हुए इसे आम आदमी पार्टी (आप) से जुड़ी साजिश बताया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता दलजीत सिंह चीमा ने कहा, “यह मर्यादा का विषय नहीं, बल्कि धर्म को राजनीतिक हथियार बनाने का प्रयास है। संगत को इस चाल को समझना चाहिए।”

हालांकि, सिख समुदाय इस मुद्दे पर दो हिस्सों में बंट गया है। कुछ लोग इसे एक उचित धार्मिक निर्णय मान रहे हैं, खासकर उन घटनाओं को ध्यान में रखते हुए जब अकाली दल के कार्यकाल में बेअदबी और गोलीकांड जैसी घटनाएं हुईं। वहीं, कुछ लोग इसे एकपक्षीय निर्णय मान रहे हैं और पूछ रहे हैं कि जब अन्य राजनीतिक नेताओं ने भी धार्मिक संस्थानों में हस्तक्षेप किया है, तो केवल सुखबीर सिंह बादल को ही क्यों निशाना बनाया गया?

अन्य तख़्तों की भूमिका और SGPC की चुप्पी

यह मामला अब अन्य तख़्तों के लिए भी एक नैतिक और संस्थागत चुनौती बन गया है। क्या अकाल तख़्त साहिब (अमृतसर) इस फैसले का समर्थन करेगा, या संयुक्त समीक्षा की मांग करेगा? एसजीपीसी, जो अकाली दल से परंपरागत रूप से जुड़ी मानी जाती है, इस मुद्दे पर चुप है — शायद अपने परंपरागत वोट बैंक और धार्मिक आलोचकों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है।

राष्ट्रीय राजनीति में असर

अकाली दल, जो एक समय एनडीए का महत्वपूर्ण अंग था, किसान आंदोलन के बाद से लगातार राजनीतिक अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। ऐसे में सुखबीर सिंह बादल का ‘तनखैया’ घोषित होना न केवल उनकी धार्मिक छवि को धक्का पहुंचा सकता है, बल्कि उनके ग्रामीण सिख समर्थकों के बीच विश्वसनीयता भी प्रभावित हो सकती है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस पूरे घटनाक्रम से यह तय होगा कि सुखबीर सिंह बादल इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं — क्या वे तख़्त के सामने पेश होकर क्षमा याचना करेंगे, विरोध जताएंगे या न्यायिक रास्ता अपनाएंगे? यह फैसला अकाली दल की पंथक राजनीति में वापसी की संभावनाओं को भी प्रभावित कर सकता है।

आगे क्या?

अब तक तख़्त पटना साहिब ने सुखबीर सिंह बादल के लिए पश्चाताप की शर्तें औपचारिक रूप से जारी नहीं की हैं, लेकिन परंपरा के अनुसार, ‘तनखैया’ घोषित व्यक्ति को तख़्त पर पेश होकर गलती स्वीकार करनी होती है और सेवा करनी होती है। यह देखना शेष है कि क्या सुखबीर बादल इस पंथक प्रक्रिया को स्वीकार करेंगे या इसके विरुद्ध कोई वैकल्पिक रास्ता अपनाएंगे।

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