नई दिल्ली, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अप्रत्याशित इस्तीफे ने देश की सियासी सरगर्मियों को अचानक तेज कर दिया है। सोमवार को उनके इस कदम ने राजनीतिक हलकों में अटकलों का बाजार गर्म कर दिया। हालांकि धनखड़ ने अपने इस्तीफे में “सेहत” को वजह बताया है, लेकिन कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष इसे केवल दिखावटी कारण मान रहा है। पार्टी का साफ कहना है कि इस्तीफे के पीछे असली वजह भारतीय जनता पार्टी के भीतर से आया अपमान और वरिष्ठ नेताओं की उदासीनता है, खासकर केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा और किरेन रिजिजू की।
21 जुलाई को धनखड़ की अध्यक्षता में दो बार कार्य मंत्रणा समिति (BAC) की बैठक बुलाई गई थी। पहली बैठक दोपहर 12:30 बजे आयोजित की गई, जिसमें जे पी नड्डा और रिजिजू सहित अधिकांश सदस्य शामिल हुए। इसी बैठक में यह निर्णय लिया गया कि शाम 4:30 बजे बैठक का दूसरा सत्र होगा, जिसकी अध्यक्षता भी धनखड़ करेंगे। लेकिन जब समय आया, तो नड्डा और रिजिजू बैठक में शामिल नहीं हुए, और कांग्रेस का दावा है कि इस अनुपस्थिति की पूर्व जानकारी धनखड़ को नहीं दी गई।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मंगलवार को इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि दोपहर 1 बजे से शाम 4:30 बजे के बीच कुछ बहुत गंभीर घटनाक्रम हुआ, जिसकी वजह से मंत्रियों की यह ‘जानबूझकर की गई अनुपस्थिति’ सामने आई। रमेश के मुताबिक, “धनखड़ बैठक के लिए तैयार थे, लेकिन उनके साथ ऐसा व्यवहार हुआ जो उनके संवैधानिक पद की गरिमा के खिलाफ था।” उनका कहना है कि नड्डा और रिजिजू की गैरमौजूदगी से धनखड़ आहत हुए, और शायद यही कारण बना कि उन्होंने उसी शाम इस्तीफा दे दिया।
कांग्रेस यह भी संकेत दे रही है कि उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के पीछे बीजेपी नेतृत्व की कथित ‘घमंडपूर्ण’ शैली और वरिष्ठ संवैधानिक पदों के प्रति दिखाए जा रहे ‘सम्मान की कमी’ भी एक कारण है। पार्टी के नेताओं ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले कई नेता अब उस हद तक पहुँच गए हैं जहाँ वे किसी की गरिमा की परवाह नहीं करते — चाहे वो उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर ही क्यों न हों।
जेपी नड्डा ने इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए सफाई दी है कि उन्होंने उपराष्ट्रपति कार्यालय को पहले ही सूचित कर दिया था कि वे और रिजिजू बैठक में उपस्थित नहीं रह पाएंगे। साथ ही, उन्होंने राज्यसभा में अपने उस कथन पर भी स्पष्टीकरण दिया जिसमें उन्होंने कहा था, “आप जो बोल रहे हैं, वो रिकॉर्ड में नहीं जाएगा।” नड्डा ने कहा कि यह टिप्पणी उपराष्ट्रपति के लिए नहीं, बल्कि विपक्षी सांसदों के लगातार हस्तक्षेप को लेकर की गई थी।
हालांकि, कांग्रेस इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं दिख रही। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि जब खुद उपराष्ट्रपति बैठक की अध्यक्षता कर रहे हों, तो उनकी उपेक्षा करना किसी भी संवैधानिक मर्यादा के अनुरूप नहीं है। कांग्रेस के अनुसार, यह सिर्फ एक बैठक का मामला नहीं है, बल्कि यह केंद्र सरकार की कार्यशैली और उनके संवैधानिक संस्थानों के प्रति व्यवहार की एक बड़ी मिसाल बन चुकी है।
बीजेपी भले ही इसे सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया कह रही हो, लेकिन विपक्ष इसे एक साजिश या गंभीर अंतर्विरोध के तौर पर देख रहा है। कांग्रेस यह भी कह रही है कि धनखड़ के इस्तीफे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मोदी सरकार के भीतर संवाद की कमी है और वरिष्ठ नेताओं की बात तक अब मायने नहीं रखती।
ऐसे में यह सवाल अब और तेज़ हो गया है कि क्या जगदीप धनखड़ का इस्तीफा केवल एक निजी निर्णय था या इसके पीछे सत्ता के केंद्र में कुछ ऐसा चल रहा है जो जनता की नज़रों से छिपाया जा रहा है। देश की संवैधानिक व्यवस्था में इतनी ऊँची कुर्सी पर बैठे व्यक्ति का अचानक हट जाना, और वह भी ऐसे माहौल में जब संसद सत्र चल रहा है, यह महज़ संयोग नहीं कहा जा सकता।
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