हिमाचल प्रदेश में मानसून ने इस बार जिस तरह कहर बरपाया है, उसने राज्य के कई हिस्सों को संकट की स्थिति में ला दिया है। बादल फटने, भूस्खलन और भारी बारिश की वजह से अब तक प्रदेश को 700 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। इन हालातों में राहत और पुनर्वास के प्रयासों को तेज करते हुए मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने बताया कि सरकार अब उन आपदा प्रभावित परिवारों को हर महीने ₹5000 की सहायता राशि देगी, जो वर्तमान में अपने घरों से विस्थापित होकर किराए पर या किसी अन्य स्थान पर शरण लिए हुए हैं।
मुख्यमंत्री ने यह जानकारी शिमला में पत्रकारों से बातचीत के दौरान दी और कहा कि राज्य सरकार आपदा से प्रभावित हर नागरिक के साथ मजबूती से खड़ी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिन परिवारों को अपने घर छोड़ने पड़े हैं और जो किसी रिश्तेदार, पड़ोसी या किराए के मकान में रह रहे हैं, उन्हें यह मासिक राहत दी जाएगी ताकि वे इस कठिन समय में आर्थिक रूप से टिक सकेें। साथ ही, स्थानीय प्रशासन को निर्देश दिए गए हैं कि वह प्रभावितों को खाद्य सामग्री सहित अन्य आवश्यक सहायता भी त्वरित रूप से मुहैया करवाए।
वर्तमान आपदा के संदर्भ में मुख्यमंत्री ने बताया कि अब तक 69 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 37 लोग लापता हैं और सौ से अधिक लोग घायल हुए हैं। पूरे प्रदेश में सड़कों, बिजली और पेयजल योजनाओं को भारी नुकसान हुआ है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मंत्रिमंडल के सभी सहयोगी मंत्री अपने-अपने विभागों की समीक्षा बैठकें कर रहे हैं और नुकसान के आंकलन का कार्य युद्धस्तर पर जारी है।
मुख्यमंत्री सुक्खू ने बताया कि उन्होंने आज देश के गृह मंत्री अमित शाह से भी बातचीत की है और प्रदेश में हुई तबाही की विस्तृत जानकारी साझा की है। उन्होंने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री ने राज्य को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया है। साथ ही, आज ही एक केंद्रीय टीम प्रदेश के आपदा प्रभावित इलाकों का दौरा करने पहुंच रही है, जो नुकसान का आकलन करेगी और अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंपेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री, तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी, डिप्टी स्पीकर विनय कुमार समेत अन्य विधायकों के साथ बैठक कर कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं ताकि राहत कार्यों को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाया जा सके।
प्रदेश सरकार का यह कदम न केवल राहत देने वाला है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि कठिन समय में प्रशासन नागरिकों की पीड़ा को समझते हुए व्यावहारिक समाधान देने की दिशा में प्रतिबद्ध है। मानसून के शुरुआती 15 दिनों में ही जिस तरह की तबाही प्रदेश ने देखी है, उसने राज्य की संवेदनशील भौगोलिक स्थिति को फिर से रेखांकित किया है। अब यह आवश्यक हो गया है कि आपदा प्रबंधन की रणनीतियों को दीर्घकालिक दृष्टिकोण से लागू किया जाए ताकि भविष्य में इस प्रकार की त्रासदी को कम किया जा सके।
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